ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...
श्रीपुराणपुरुषोत्तमाय नमः
श्रीगणेशाय नमः
श्रीशिवपुराण
तृतीय भाग : शतरूद्रसंहिता
कथा-क्रम
- तृतीय भाग : शतरूद्रसंहिता
-
- शिवजी के सद्योजात, वामदेव, सत्पुरूष, अघोर और ईशान नामक पाँच अवतारों का वर्णन
- शिवजी की अष्टमूर्तियों तथा अर्धनारीनररूप का सविस्तार वर्णन
- वाराहकल्प में होनेवाले शिवजी के प्रथम अवतार से लेकर नवम ऋषभ अवतार तक का वर्णन
- शिवजी द्वारा दसवें से लेकर अठ्टाईसवें योगेश्वरावतारों का वर्णन
- नन्दीश्वरावतार का वर्णन
- नन्दीश्वर के जन्म, वर प्राप्ति अभिषेक और विवाह का वर्णन
- कालभैरव का माहास्थ्य, विश्वानर की तपस्या और शिवजी का प्रसन्न होकर उनकी पत्नी शुचिष्मती के गर्भ से उनके पुत्ररूप में प्रकट होने का उन्हें वरदान देना
- शिवजी का शुचिष्मती के गर्भ से प्राकट्य, ब्रह्मा द्वारा बालक का संस्कार करके 'गृहपति' नाम रखा जाना, नारदजी द्वारा उसका भविष्य-कथन, पिता की आज्ञा से गृहपति का काशी में जाकर तप करना, इन्द्र का वर देने के लिये प्रकट होना, गृहपति का उन्हें ठुकराना, शिवजी का प्रकट होकर उन्हें वरदान देकर दिक्पाल पद प्रदान करना तथा अग्नीश्वरलिंग और अग्नि का माहात्म्य
- शिवजी के महाकाल आदि दस अवतारों का तथा ग्यारह रुद्र-अवतारों का वर्णन
- शिवजी के दुर्वासावतार तथा हनुमदवतार का वर्णन
- शिवजीके पिप्पलाद-अवतार के प्रसंग में देवताओं की दधीचि मुनि से अस्थि-याचना, दधीचि का शरीर त्याग, वज्र-निर्माण तथा उसके द्वारा वृत्रासुर का वध, सुवर्चा का देवताओं को शाप, पिप्पलाद का जन्म और उनका विस्तृत वृत्तान्त
- भगवान् शिव के द्विजेश्वरावतार की कथा, राजा भद्रायु तथा रानी कीर्तिमालिनी की धार्मिक दृढ़ता की परीक्षा
- भगवान् शिव का यतिनाथ एवं हंस नामक अवतार
- भगवान् शिव के कृष्णदर्शन नामक अवतार की कथा
- भगवान् शिव के अवधूतेश्वरावतार की कथा और उसकी महिमा का वर्णन
- भगवान् शिव के भिक्षुवर्यावतार की कथा, राजकुमार और द्विजकुमार पर कृपा
- शिव के सुरेश्वरावतार की कथा, उपमन्यु की तपस्या और उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति
- शिवजी के किरातावतार के प्रसंग में श्रीकृष्ण द्वारा द्वैतवन में दुर्वासा के शाप से पाण्डवों की रक्षा, व्यासजी का अर्जुन को शक्रविद्या और पार्थिव पूजन की विधि बताकर तप के लिये सम्मति देना, अर्जुन का इन्द्रकील पर्वत पर तप, इन्द्र का आगमन और अर्जुन को वरदान, अर्जुनका शिवजी के उद्देश्यसे पुन: तप में प्रवृत्त होना
- किरातावतार के प्रसंग में मूक नामक दैत्य का शूकररूप धारण करके अर्जुन के पास आना, शिवजी का किरातवेष में प्रकट होना और अर्जुन तथा किरातवेषधारी शिव द्वारा उस दैत्य का वध
- अर्जुन और शिवदूत का वार्तालाप, किरातवेषधारी शिवजी के साथ अर्जुन का युद्ध, पहचानने पर अर्जुन द्वारा शिव-स्तुति, शिवजी का अर्जुन को वरदान देकर अन्तर्धान होना, अर्जुन का आश्रम पर लौटकर भाइयों से मिलना, श्रीकृष्ण का अर्जुन से मिलने के लिये वहाँ पधारना
- शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंगावतारों का सविस्तर वर्णन
-
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book